Ganga Expressway: उत्तर प्रदेश में तेजी से निर्माणाधीन गंगा एक्सप्रेसवे को पूरी तरह ईको-फ्रेंडली बनाने की योजना पर काम किया जा रहा है। इस परियोजना के तहत एक्सप्रेसवे के दोनों ओर पर्यावरण संतुलन बनाए रखने के लिए खास इंतजाम किए जा रहे हैं। यूपीडा (उत्तर प्रदेश एक्सप्रेसवे औद्योगिक विकास प्राधिकरण) ने इस हाईवे को पर्यावरण संरक्षण के अनुकूल बनाने के लिए केंद्र और राज्य सरकार के पर्यावरण संस्थानों की गाइडलाइंस का पालन किया है।
वन्य जीवों की सुरक्षा के लिए बाउंड्रीवाल और अंडरपास
गंगा एक्सप्रेसवे के दोनों किनारों पर 1.5 मीटर ऊंची बाउंड्रीवाल बनाई जाएगी ताकि जंगली जानवरों की आवाजाही कंट्रोल हो और हादसों को रोका जा सके। इसके अलावा, वन्य जीवों के निर्बाध आवागमन को सुनिश्चित करने के लिए अंडरपास और ओवरपास की संख्या बढ़ाई गई है। पहले जहां 179 ओवरपास बनाए जाने थे, अब इनकी संख्या बढ़ाकर 218 कर दी गई है, जिनमें से 158 का निर्माण पूरा हो चुका है। अंडरपास की संख्या भी 379 से बढ़ाकर 453 कर दी गई है, जिसमें से 447 पहले ही तैयार हो चुके हैं। इसके अलावा, 796 कल्वर्ट बनाए जा चुके हैं ताकि जल निकासी में कोई समस्या न हो।
रेन वाटर हार्वेस्टिंग से जल संरक्षण
इस एक्सप्रेसवे के निर्माण में वर्षा जल संचयन (Rain Water Harvesting) की आधुनिक तकनीक को अपनाया गया है। कुल 2380 स्थानों पर रेन वाटर हार्वेस्टिंग पिट बनाए जाएंगे, जिससे बारिश का पानी सुरक्षित रूप से संग्रहीत किया जा सकेगा और जल स्तर को बनाए रखने में मदद मिलेगी। यह कदम क्षेत्र में भूजल स्तर को सुधारने और सूखा प्रभावित इलाकों में जल संकट को कम करने में सहायक साबित होगा।
पर्यावरण संरक्षण के लिए ग्रीन बेल्ट विकसित होगी
गंगा एक्सप्रेसवे के मार्ग में तीन प्रमुख पक्षी विहार (Bird Sanctuaries) स्थित हैं। इन क्षेत्रों में शोरगुल से बचाव और पर्यावरण संतुलन बनाए रखने के लिए ग्रीन बेल्ट विकसित की जाएगी। इन पक्षी विहारों में हरदोई स्थित सांडी बर्ड सैंक्चुरी, रायबरेली स्थित समसपुर बर्ड सैंक्चुरी और उन्नाव में नवाबगंज चंद्रशेखर आजाद बर्ड सैंक्चुरी शामिल हैं। इन क्षेत्रों में रात के समय अत्यधिक रोशनी और ध्वनि प्रदूषण को रोकने के लिए विशेष पौधरोपण अभियान चलाया जाएगा, जिससे वन्यजीवों को किसी प्रकार की परेशानी न हो।
एक्सप्रेसवे पर पैदल चलना पूरी तरह प्रतिबंधित
गंगा एक्सप्रेसवे पर पैदल यात्रा पूरी तरह से प्रतिबंधित होगी। यह निर्णय सड़क पर होने वाली दुर्घटनाओं को रोकने के लिए लिया गया है। इसके अलावा, एक्सप्रेसवे के दोनों ओर हर 500 मीटर की दूरी पर ऑयल और ग्रीस ट्रैप लगाए जाएंगे, जिससे सड़कों पर गिरने वाले तेल और अन्य हानिकारक रसायनों को नदियों और जल सोर्स बहने से रोका जा सकेगा। इससे जल प्रदूषण को कंट्रोल करने में मदद मिलेगी।
रफ्तार के हिसाब से डिजाइन
गंगा एक्सप्रेसवे को 120 किमी प्रति घंटे की गति के लिए डिज़ाइन किया गया है, लेकिन सड़क सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए वाहनों को अधिकतम 100 किमी प्रति घंटे की रफ्तार से चलने की पर्मिशन होगी। इससे सड़क दुर्घटनाओं की संभावना को कम किया जा सकेगा और यात्री सुरक्षित यात्रा का आनंद ले सकेंगे।
मुख्य कैरिजवे रहेगा भूतल से 3.5 मीटर ऊंचा
गंगा एक्सप्रेसवे के मुख्य कैरिजवे को भूतल से 3.5 मीटर ऊंचा बनाया जाएगा। इससे बारिश के दौरान जलभराव की समस्या से बचा जा सकेगा और सड़क लंबे समय तक सुरक्षित बनी रहेगी। इसके अलावा, 1.5 मीटर ऊंची बाउंड्रीवाल के निर्माण से सड़क पर जंगली जानवरों की एंट्री को पूरी तरह रोका जा सकेगा।
सरकारी निर्देशों का पालन किया जाएगा
इस परियोजना को सफलतापूर्वक लागू करने के लिए उत्तर प्रदेश सरकार भारतीय वन्यजीव संस्थान (WII) और अन्य पर्यावरण संगठनों के निर्देशों का पालन कर रही है। एक्सप्रेसवे के निर्माण के दौरान किसी भी प्रकार की पर्यावरणीय क्षति को रोकने के लिए विशेष उपाय किए गए हैं, जिससे यह सुनिश्चित किया जा सके कि सड़क निर्माण के कारण जैव विविधता पर नेगेटिव असर न पड़े।
गंगा एक्सप्रेसवे की खासियत
- कुल लंबाई: 594 किलोमीटर
- अधिकतम गति सीमा: 100 किमी प्रति घंटा
- वन्य जीवों के लिए 218 ओवरपास और 453 अंडरपास
- वर्षा जल संचयन के लिए 2380 रेन वाटर हार्वेस्टिंग पिट
- ऑयल और ग्रीस ट्रैप से जल प्रदूषण कंट्रोल
- पक्षी विहारों के लिए विशेष शोर-कंट्रोल उपाय
- मुख्य कैरिजवे भूतल से 3.5 मीटर ऊंचा
- सड़क के दोनों ओर 1.5 मीटर ऊंची बाउंड्रीवाल