Electricity Tower: भारत सरकार के ऊर्जा मंत्रालय ने बिजली टावर और 132 केवी से ऊपर की विद्युत पारेषण लाइनों से प्रभावित किसानों के लिए नई मुआवजा गाइडलाइन जारी की है। इस नई व्यवस्था के तहत किसानों को टावर की भूमि और कॉरिडोर की भूमि का उचित मुआवजा देने का प्रावधान किया गया है। इस नीति के लागू होने से देशभर के उन किसानों को राहत मिलेगी, जिनकी भूमि इन टावरों और ट्रांसमिशन लाइनों के कारण प्रभावित होती है।
मुआवजे की दरें तय, किसानों को मिलेगी राहत
भारतीय किसान संघ के जिलाध्यक्ष शंभू सिंह राठौड़ ने बताया कि सरकार ने डीएलसी (District Level Committee) दर के आधार पर मुआवजा तय किया है। इसमें प्रमुख प्रावधान ये हैं:
- Electricity Tower के नीचे की भूमि: प्रभावित किसानों को डीएलसी का 200 प्रतिशत मुआवजा मिलेगा।
- दो टावरों के मध्य कॉरिडोर की भूमि: किसानों को डीएलसी का 30 प्रतिशत मुआवजा दिया जाएगा।
- फसल मुआवजा: यह मुआवजा फसल मुआवजा योजना से एक्स्ट्रा होगा, यानी किसानों को फसल नुकसान के लिए अलग से मुआवजा मिलेगा।
कैसे होगा मुआवजा निर्धारण?
मुआवजे की गणना संबंधित क्षेत्र के राजस्व विभाग के अधिकारियों द्वारा की जाएगी। इसके लिए वे लोकल डीएलसी दरों को आधार बनाएंगे। यह प्रक्रिया पारदर्शी होगी और किसानों के हितों को ध्यान में रखते हुए निष्पक्षता से लागू की जाएगी।
किन किसानों को होगा सबसे ज्यादा फायदा?
यह मुआवजा नीति उन किसानों के लिए सबसे ज्यादा फायदेमंद होगी, जिनकी भूमि पर 132 केवी और इससे ऊपर की विद्युत पारेषण लाइनें गुजर रही हैं। इस नीति से लाखों किसानों को फायदा मिलेगा, खासकर उन राज्यों में जहां बड़े पैमाने पर पारेषण लाइनों का निर्माण किया जाता है।
पुरानी व्यवस्था से कैसे अलग है यह नीति?
पहले किसानों को केवल फसल नुकसान का मुआवजा मिलता था, लेकिन अब सरकार ने टावर और कॉरिडोर भूमि के लिए अलग से मुआवजा देने का फैसला किया है। इससे किसानों की आर्थिक सुरक्षा मजबूत होगी और उनकी जमीन का सही मूल्यांकन हो सकेगा।
निगरानी और पारदर्शिता पर जोर
सरकार ने यह भी सुनिश्चित किया है कि मुआवजा वितरण की प्रक्रिया पारदर्शी हो। इसके लिए जिला स्तरीय अधिकारियों को जिम्मेदारी सौंपी गई है। किसानों की शिकायतों के निवारण के लिए एक खास हेल्पलाइन भी शुरू की जा सकती है।