Income Tax limit: भारत में इनकम टैक्स हर व्यक्ति के इनकम पर लगाया जाने वाला एक महत्वपूर्ण कर है। इसकी शुरुआत आज़ादी से पहले हुई थी, लेकिन इसे व्यवस्थित रूप से लागू करने का काम 1947 के बाद से शुरू हुआ। उस समय जिन लोगों की इनकम 1500 रुपये से कम थी, उन्हें टैक्स देने से छूट मिली थी। यह प्रणाली हर साल नई नीतियों और नियमों के साथ विकसित होती रही है।
पहला बजट और टैक्स की शुरुआत
आजादी के बाद देश का पहला बजट पेश किया गया, जिसमें आयकर का प्रावधान रखा गया। उस समय 1500 रुपये तक की इनकम टैक्स-फ्री थी। यह बजट देश के वित्तीय ढांचे को मजबूत बनाने की दिशा में पहला कदम था। धीरे-धीरे समय के साथ टैक्स की दरों और नियमों में बदलाव किए गए ताकि हर वर्ग से योगदान लिया जा सके।
कुंवारों और शादीशुदा के लिए अलग टैक्स सिस्टम
1955 में, भारत सरकार ने शादीशुदा और कुंवारों के लिए अलग-अलग टैक्स व्यवस्था लागू की। इसके तहत शादीशुदा कपल्स को 2000 रुपये तक की इनकम पर टैक्स से छूट दी गई, जबकि कुंवारों को 1000 रुपये तक की इनकम पर टैक्स से राहत मिली। यह उस समय का एक अनोखा और क्रांतिकारी कदम था, जो परिवारों को प्रोत्साहन देने के लिए लिया गया था।
बच्चों के आधार पर टैक्स में छूट
1958 में, सरकार ने एक नई व्यवस्था लागू की, जिसमें बच्चों की संख्या के आधार पर टैक्स में छूट दी जाती थी। जिन परिवारों के एक बच्चा था, उन्हें 3300 रुपये तक की इनकम पर टैक्स से राहत दी गई। अगर परिवार में दो बच्चे थे, तो यह छूट बढ़कर 3600 रुपये तक हो जाती थी। वहीं, जिन कपल्स का कोई बच्चा नहीं था, वे 3000 रुपये तक की इनकम पर टैक्स देने से बच जाते थे।
सबसे ज्यादा टैक्स देने का दौर
1973-74 का समय टैक्सपेयर्स के लिए सबसे मुश्किल समय माना जाता है। इस दौरान अधिकतम इनकम टैक्स की दर 85% तक पहुंच गई थी। इसमें सरचार्ज जोड़ने पर यह 97.75% तक हो जाती थी। इसका मतलब यह था कि अगर किसी ने 100 रुपये कमाए, तो उन्हें लगभग 97.75 रुपये टैक्स के रूप में सरकार को देना होता था। यह समय भारतीय टैक्स प्रणाली का सबसे कठोर दौर था।
ब्लैक बजट
1973-74 के बजट को ‘ब्लैक बजट’ के नाम से जाना गया। इस दौरान प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी और वित्त मंत्री यशवंतराव बी. चव्हाण ने इसे पेश किया था। हालांकि, इस बजट में दो लाख रुपये तक की इनकम को टैक्स-फ्री रखा गया था। लेकिन, दो लाख रुपये से अधिक की इनकम पर हर 100 रुपये में से 97.75 रुपये टैक्स देना पड़ता था। यह कदम आर्थिक असमानता को कम करने के लिए उठाया गया था।
टैक्स की दरों में बदलाव
समय के साथ टैक्स की दरों और नियमों में बदलाव हुए। 1980 के दशक में टैक्स स्लैब में राहत दी गई और 1990 के बाद टैक्स रिफॉर्म्स का दौर शुरू हुआ। इसमें टैक्स स्लैब को सरल और व्यवस्थित किया गया। इसके साथ ही, टैक्स फ्री इनकम की सीमा को धीरे-धीरे बढ़ाया गया।
डिजिटल युग और टैक्स में पारदर्शिता
डिजिटल इंडिया अभियान के तहत आयकर विभाग ने टैक्स सिस्टम को पूरी तरह से डिजिटल बना दिया। अब टैक्स फाइलिंग, रिफंड और अन्य प्रक्रियाएं ऑनलाइन की जा सकती हैं। इससे टैक्सपेयर्स को बड़ी सुविधा मिली है और पारदर्शिता भी बढ़ी है।
आज का टैक्स सिस्टम
आज के समय में भी टैक्स नियमों में शादीशुदा और कुंवारों के लिए कुछ अलग-अलग प्रावधान मौजूद हैं। हालांकि, यह अंतर अब पहले की तुलना में कम हो गया है। सरकार हर वर्ग के लोगों को ध्यान में रखकर टैक्स सिस्टम तैयार करती है।
सरकार द्वारा दी जाने वाली छूट और रियायतें
आज के समय में टैक्सपेयर्स को अलग-अलग प्रकार की छूट दी जाती है। जैसे कि होम लोन, शिक्षा लोन, मेडिकल खर्च, और निवेश पर टैक्स में राहत मिलती है। सरकार का उद्देश्य है कि टैक्सपेयर्स को प्रोत्साहन मिले और वे ईमानदारी से टैक्स जमा करें।