शीतला अष्टमी 22 मार्च को है या 23 मार्च को, जाने पूजा का शुभ मुहूर्त Sheetla Ashtami

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Sheetla Ashtami: हिंदू धर्म में शीतला अष्टमी का व्रत (Sheetala Ashtami Vrat) विशेष महत्व रखता है। इसे बासौड़ा (Basoda) भी कहा जाता है। इस दिन माता शीतला की पूजा की जाती है और व्रत रखा जाता है। धार्मिक मान्यता के अनुसार, इस व्रत को करने से बीमारियों से मुक्ति मिलती है और घर-परिवार में सुख-समृद्धि बनी रहती है।

कब है शीतला अष्टमी 2025? (Sheetala Ashtami 2025 Date & Time)

हिंदू पंचांग के अनुसार, शीतला अष्टमी 2025 में 22 मार्च को मनाई जाएगी। इस दिन अष्टमी तिथि सुबह 4:30 बजे से शुरू होकर 23 मार्च को सुबह 5:23 बजे तक रहेगी।

शीतला अष्टमी 2025 पूजन का शुभ मुहूर्त:

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  • पूजा का समय: सुबह 6:23 से 6:30 तक
  • कुल पूजन अवधि: 12 घंटे 11 मिनट

शीतला अष्टमी की पूजा विधि (Sheetala Ashtami Puja Vidhi)

इस दिन विशेष रूप से माता शीतला की पूजा की जाती है। पूजा विधि इस प्रकार है:

  1. सुबह जल्दी उठकर स्नान करें और स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
  2. व्रत का संकल्प लें और पूजा की तैयारी करें।
  3. माता शीतला की मूर्ति या चित्र को गंगाजल से स्नान कराएं।
  4. माता को बासी भोजन (एक दिन पहले का बना हुआ खाना) का भोग लगाएं।
  5. दीप, रोली, चंदन, अक्षत और फूल चढ़ाकर माता की विधिवत पूजा करें।
  6. माता शीतला के मंत्रों का जाप करें और आरती करें।

शीतला अष्टमी पर बासी भोजन खाने की परंपरा (Basoda Par Basi Bhojan)

शीतला अष्टमी को बासौड़ा भी कहा जाता है क्योंकि इस दिन बासी भोजन करने की परंपरा है। मान्यता है कि माता शीतला को ठंडी चीजें पसंद होती हैं, इसलिए इस दिन ताजा भोजन बनाने की बजाय एक दिन पहले का बना हुआ भोजन खाया जाता है।

बासी भोजन में ये चीजें शामिल की जाती हैं:

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  • मीठे चावल
  • पूड़ी
  • हलवा
  • दही
  • बेसन की पकौड़ी

शीतला माता की कथा (Sheetala Mata Ki Katha)

पुराणों में माता शीतला से जुड़ी एक कथा प्रचलित है। कथा के अनुसार, एक बार एक महिला ने शीतला माता की पूजा किए बिना घर में गर्म भोजन बनाया। इससे माता शीतला नाराज हो गईं और उस गांव में चेचक जैसी बीमारी फैल गई। जब लोगों को अपनी गलती का अहसास हुआ, तब उन्होंने माता शीतला की पूजा की और बासी भोजन ग्रहण किया। इसके बाद सभी रोगों से मुक्त हो गए।

शीतला माता का स्वरूप (Sheetala Mata Ka Swaroop)

माता शीतला को सौम्य और शांत देवी के रूप में पूजा जाता है। उनका स्वरूप कुछ इस प्रकार है:

  • वे गर्दभ (गधे) पर सवार होती हैं।
  • उनके एक हाथ में झाड़ू और दूसरे हाथ में सूप (बांस की बनी चीज) होता है।
  • वे कलश में जल लेकर चलती हैं, जिससे वे रोगों का नाश करती हैं।

शीतला अष्टमी का वैज्ञानिक महत्व

शीतला अष्टमी के दिन बासी भोजन खाने की परंपरा का वैज्ञानिक आधार भी है। गर्मी के मौसम में पाचन तंत्र को स्वस्थ रखने के लिए हल्का और ठंडा भोजन फायदेमंद होता है। इसके अलावा, यह व्रत स्वच्छता और शीतलता बनाए रखने का संदेश देता है जिससे संक्रमण और बीमारियों से बचाव किया जा सकता है।

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शीतला अष्टमी व्रत के लाभ (Benefits of Sheetala Ashtami Vrat)

  1. बीमारियों से रक्षा – यह व्रत करने से संक्रामक रोगों से बचाव होता है।
  2. परिवार में सुख-शांति – माता की कृपा से घर-परिवार में सुख-समृद्धि बनी रहती है।
  3. मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं – माता शीतला की पूजा करने से मनचाही इच्छाएं पूरी होती हैं।
  4. बच्चों की सुरक्षा – खासतौर पर यह व्रत बच्चों की सेहत के लिए बहुत लाभकारी माना जाता है।