Bank Rules: भारतीय सहकारी बैंकिंग सेक्टर एक बार फिर संकट के दौर से गुजर रहा है। हाल ही में न्यू इंडिया को-ऑपरेटिव बैंक (New India Co-operative Bank) पर मंडरा रहे वित्तीय संकट ने जमाकर्ताओं और बैंकिंग सेक्टर में चिंता बढ़ा दी है। यह बैंक पिछले दो सालों से लगातार घाटे की रिपोर्ट कर रहा है, जिससे इसके स्थायित्व को लेकर गंभीर सवाल खड़े हो रहे हैं।
वित्तीय स्थिति और बढ़ते घाटे का संकट
न्यू इंडिया को-ऑपरेटिव बैंक की वित्तीय स्थिति लगातार बिगड़ रही है। वित्त वर्ष 2024 के अंत तक बैंक की लोन बुक ₹1,174.85 करोड़ थी, जबकि इसकी जमा राशि ₹2,436.38 करोड़ थी। चिंताजनक बात यह है कि बैंक की लगभग 60% जमा राशि की मैच्योरिटी अवधि एक से तीन साल की है, जबकि इसके तीन-चौथाई से अधिक लोन केवल रियल एस्टेट सेक्टर पर केंद्रित हैं। यह जोखिम बैंक के लिए बड़ा खतरा बन सकता है।
आरबीआई के सख्त प्रतिबंध और उनकी वजह
भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) ने न्यू इंडिया को-ऑपरेटिव बैंक पर सख्त प्रतिबंध लगाए हैं। इन प्रतिबंधों के तहत बैंक किसी भी प्रकार का नया लोन नहीं दे सकता और न ही कोई नई जमा मंजूर कर सकता है। इसके अलावा, ग्राहक अपने करंट अकाउंट, सेविंग अकाउंट या अन्य किसी भी खाते से पैसे नहीं निकाल सकते हैं। आरबीआई ने यह कदम जमाकर्ताओं के हितों की सुरक्षा के लिए उठाया है, ताकि बैंक की नकदी स्थिति को कंट्रोल में रखा जा सके।
बैंक का रियल एस्टेट सेक्टर में बढ़ता एक्सपोजर
न्यू इंडिया को-ऑपरेटिव बैंक का रियल एस्टेट सेक्टर में बढ़ता निवेश एक गंभीर समस्या बन गया है। वित्त वर्ष 2020 में बैंक का इस क्षेत्र में निवेश 11.4% था, जो 2024 में बढ़कर 35.6% हो गया। वित्त वर्ष 2024 के अंत तक बैंक का रियल एस्टेट एक्सपोजर ₹418.34 करोड़ तक पहुंच गया था। इसमें रेजिडेंशियल और कमर्शियल दोनों सेगमेंट शामिल हैं। बैंक के लिए यह स्थिति जोखिमभरी हो गई है, क्योंकि रियल एस्टेट सेक्टर की अस्थिरता से बैंक की वित्तीय स्थिति पर नेगेटिव असर पड़ सकता है।
एनपीए और बैंक के घाटे की कन्डिशन
मार्च 2024 तक बैंक का सकल गैर-निष्पादित संपत्ति (NPA) अनुपात 7.96% था। हालांकि, बैंक का शुद्ध घाटा पिछले वर्ष के ₹42.1 करोड़ से घटकर वित्त वर्ष 2024 में ₹22.8 करोड़ रह गया, लेकिन संपत्ति की गुणवत्ता में लगातार गिरावट जारी है। वित्त वर्ष 2013 में बैंक का सकल एनपीए अनुपात 7.5% था, जो वित्त वर्ष 2022 में घटकर 6.4% रह गया था, लेकिन हाल के सालों में इसमें फिर से बढ़ोतरी देखी गई है।
जमाकर्ताओं में मची अफरा-तफरी
आरबीआई के प्रतिबंधों के बाद बैंक के ग्राहकों में भारी हड़कंप मच गया है। बड़ी संख्या में खाताधारक अपने पैसे निकालने के लिए बैंक शाखाओं में पहुंच रहे हैं, लेकिन उन्हें निराशा हाथ लग रही है। जमाकर्ताओं की चिंता को देखते हुए, भारतीय डिपॉजिट इंश्योरेंस एंड क्रेडिट गारंटी कॉरपोरेशन (DICGC) ने यह स्पष्ट किया है कि प्रत्येक खाताधारक को अधिकतम ₹5 लाख तक की सुरक्षा दी जाएगी। इसका मतलब यह है कि अगर बैंक पूरी तरह से दिवालिया हो जाता है, तो हर ग्राहक को अधिकतम ₹5 लाख ही वापस मिलेंगे।
बैंक कर्मचारियों और निवेशकों की कन्डिशन
बैंक के संकट में जाने के कारण कर्मचारियों की नौकरियां भी दांव पर लग गई हैं। कई कर्मचारी इस संभावना के चलते दूसरी नौकरियों की तलाश कर रहे हैं। वहीं, बैंक में निवेश करने वाले लोग भी नुकसान के डर से अपने निवेश को लेकर असमंजस में हैं।
सरकार और आरबीआई की भूमिका
सरकार और आरबीआई इस संकट पर करीबी नजर बनाए हुए हैं। आरबीआई यह सुनिश्चित करना चाहता है कि बैंकिंग सेक्टर में किसी भी तरह की अनिश्चितता न फैले और जमाकर्ताओं का पैसा सुरक्षित रहे। सरकार भी यह विचार कर रही है कि सहकारी बैंकों के लिए अधिक कड़े नियम बनाए जाएं, जिससे भविष्य में इस तरह के संकट को टाला जा सके।
सहकारी बैंकिंग सेक्टर की स्थिरता पर सवाल
न्यू इंडिया को-ऑपरेटिव बैंक का संकट यह दिखाता है कि भारत में सहकारी बैंकिंग सेक्टर की स्थिरता को लेकर गंभीर सुधारों की जरूरत है। पिछले कुछ सालों में कई सहकारी बैंक वित्तीय संकट में घिर चुके हैं, जिससे पूरे सेक्टर की विश्वसनीयता पर सवाल उठने लगे हैं।