Public Holiday: उत्तराखंड में इस साल होली के अवकाश को लेकर असमंजस की स्थिति बनी हुई थी, जिसे अब सरकार ने स्पष्ट कर दिया है। होलिका दहन 14 मार्च की रात को होगा, जबकि होली का मुख्य उत्सव 15 मार्च को मनाया जाएगा। हालांकि, सरकार ने होली का सार्वजनिक अवकाश 14 मार्च को घोषित किया था, जिससे कई कर्मचारी मायूस हो गए थे।
नैनीताल और ऊधमसिंह नगर में 15 मार्च को भी छुट्टी
राज्य सरकार की घोषणा के बाद नैनीताल और ऊधमसिंह नगर जिलों के डीएम ने कर्मचारियों की परेशानी को देखते हुए 15 मार्च को भी अवकाश घोषित कर दिया है। लेकिन यह अवकाश सभी संस्थानों पर लागू नहीं होगा।
- जिन स्कूलों में सीबीएसई बोर्ड परीक्षा या अन्य महत्वपूर्ण परीक्षाएं प्रस्तावित हैं, वहां यह आदेश लागू नहीं होगा।
- बैंक, कोषागार और उपकोषागार खुले रहेंगे।
- अन्य सभी शैक्षणिक और सरकारी संस्थानों में 15 मार्च को अवकाश रहेगा।
क्यों होली की तारीख में हुआ बदलाव?
होली की तारीख में बदलाव का मुख्य कारण चंद्रग्रहण है। ज्योतिषाचार्यों के अनुसार, 15 मार्च को सुबह 9:29 बजे से चंद्रग्रहण शुरू होगा और दोपहर 3:29 बजे समाप्त होगा। इस कारण धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, होली की छलड़ी 14 मार्च को नहीं खेली जाएगी, बल्कि 15 मार्च को मनाई जाएगी।
उत्तराखंड में होली की धूम
उत्तराखंड में होली का त्यौहार बड़े उत्साह के साथ मनाया जाता है। नौ मार्च को चीर बंधन के साथ होली की शुरुआत हो गई थी। इसके बाद से पूरे राज्य में होली गायन और रंगों की बारिश का माहौल बना हुआ है।
- होल्यारों की टोलियां गांव-गांव जाकर होली के गीत गा रही हैं।
- शहरों और कस्बों में भी रंग खेलने का दौर शुरू हो गया है।
- बाहरी राज्यों में काम करने वाले लोग भी अवकाश लेकर अपने गांव लौट आए हैं।
- राज्य में टीके के बाद होली का समापन होगा।
कैसे मनाई जाती है उत्तराखंड की होली?
उत्तराखंड में होली सिर्फ रंगों तक सीमित नहीं है, बल्कि यहां की होली अपने विशेष संगीत और रीति-रिवाजों के लिए जानी जाती है।
1. बैठकी होली
उत्तराखंड की पारंपरिक होली को बैठकी होली कहा जाता है। इसमें लोग एक जगह बैठकर शास्त्रीय संगीत की धुनों पर होली के गीत गाते हैं। यह परंपरा विशेष रूप से गढ़वाल और कुमाऊं क्षेत्र में प्रचलित है।
2. खड़ी होली
खड़ी होली में लोग ढोल-दमाऊं की थाप पर पारंपरिक परिधान पहनकर नृत्य करते हैं। यह होली उत्साह और उमंग से भरपूर होती है।
3. महिला होली
इसमें महिलाएं समूह बनाकर होली के गीत गाती हैं और एक-दूसरे को अबीर-गुलाल लगाती हैं। यह परंपरा खासतौर पर ग्रामीण क्षेत्रों में देखने को मिलती है।