Rocket Fuel: रॉकेट एक ऐसा शब्द है जिसे सुनते ही हमारे मन में आकाश को चीरते हुए एक विशालकाय यान का चित्र बन जाता है। लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि यह रॉकेट आखिर उड़ता कैसे है? और उसमें कौन सा ईंधन डाला जाता है?
आइए जानते हैं रॉकेट से जुड़ी तमाम रोचक बातें और इसके पीछे छिपा विज्ञान।
न्यूटन के गति के तीसरे नियम पर आधारित है रॉकेट
रॉकेट का उड़ना न्यूटन के गति के तीसरे नियम पर आधारित है। न्यूटन का तीसरा नियम कहता है – “हर क्रिया की बराबर और विपरीत प्रतिक्रिया होती है।”
रॉकेट जब नीचे की तरफ तेज गति से गैस और धुएं को छोड़ता है तो वही गैस रॉकेट को ऊपर की तरफ धकेलती है।
यही कारण है कि रॉकेट तेजी से ऊपर उठता है और अंतरिक्ष तक पहुंच जाता है।
रॉकेट में नहीं डाला जाता पेट्रोल या डीजल
अक्सर लोग सोचते हैं कि रॉकेट में भी पेट्रोल या डीजल जैसा ईंधन डाला जाता होगा, लेकिन ऐसा नहीं है।
रॉकेट में एक खास प्रकार का ईंधन डाला जाता है जो साधारण वाहनों में नहीं होता। रॉकेट के लिए इस्तेमाल किया जाने वाला ईंधन उसके डिजाइन और उद्देश्य पर निर्भर करता है।
चंद्रयान-3 में तीन तरह के ईंधन का इस्तेमाल
अगर हम हाल ही में लॉन्च हुए चंद्रयान-3 की बात करें तो इसमें तीन चरणों (Stages) में अलग-अलग तरह का ईंधन इस्तेमाल किया गया।
- पहला चरण (First Stage): इसमें सॉलिड फ्यूल (ठोस ईंधन) का प्रयोग हुआ।
- दूसरा चरण (Second Stage): इस स्टेज में लिक्विड फ्यूल (तरल ईंधन) का इस्तेमाल किया गया।
- अंतिम चरण (Final Stage): इसमें क्रायोजेनिक इंजन का प्रयोग किया गया जिसमें लिक्विड हाइड्रोजन और लिक्विड ऑक्सीजन का उपयोग किया गया।
सॉलिड फ्यूल में क्या होता है?
सॉलिड फ्यूल यानी ठोस ईंधन में मुख्य रूप से दो चीजें होती हैं:
- अमोनियम परक्लोरेट: यह एक ऑक्सीडाइज़र होता है।
- एलुमिनियम पाउडर: यह एक ईंधन के रूप में कार्य करता है।
इन दोनों के मिश्रण से एक शक्तिशाली रॉकेट बूस्टर तैयार किया जाता है जो रॉकेट को लॉन्चिंग के समय बहुत तेज थ्रस्ट देता है।
लिक्विड फ्यूल में क्या होता है?
लिक्विड फ्यूल यानी तरल ईंधन में आमतौर पर ये रसायन होते हैं:
- लिक्विड ऑक्सीजन (LOX)
- लिक्विड हाइड्रोजन (LH2)
- लिक्विड पेट्रोलियम (कभी-कभी)
लिक्विड फ्यूल सॉलिड फ्यूल की तुलना में ज्यादा कंट्रोल में जलता है और लंबी दूरी तक रॉकेट को गति प्रदान करता है।
क्रायोजेनिक इंजन क्या होता है?
क्रायोजेनिक इंजन रॉकेट विज्ञान का सबसे बेस्ट और जटिल हिस्सा है।
इसमें अत्यधिक ठंडे तापमान पर रखे गए लिक्विड हाइड्रोजन और लिक्विड ऑक्सीजन का प्रयोग किया जाता है।
क्रायोजेनिक इंजन रॉकेट को बहुत ऊंचाई तक ले जाने में मदद करता है। चंद्रयान-3 जैसे मिशन में अंतिम स्टेज में इस इंजन का इस्तेमाल किया जाता है ताकि रॉकेट को स्पेस में पहुंचाया जा सके।
हाइब्रिड इंजन का भी होता है उपयोग
आजकल रॉकेट साइंस में हाइब्रिड इंजन का भी प्रयोग किया जाने लगा है।
हाइब्रिड इंजन में एक ईंधन सॉलिड (ठोस) होता है और दूसरा लिक्विड।
इस प्रकार के इंजन का फायदा यह है कि यह दोनों तरह के इंजनों के गुणों को मिलाकर बेहतर प्रदर्शन देता है।
रॉकेट लॉन्चिंग में क्यों निकलता है धुआं और आग?
जब रॉकेट लॉन्च होता है तो आपने देखा होगा कि उससे भारी मात्रा में धुआं और आग की लपटें निकलती हैं।
यह धुआं असल में गर्म गैस और जलते हुए ईंधन का मिक्स्चर होता है।
रॉकेट में भरा गया ईंधन जब जलता है तो भारी मात्रा में ऊर्जा निकलती है जो गैस और धुएं के रूप में बाहर आती है।
इसी ऊर्जा से रॉकेट को ऊपर की ओर गति मिलती है।
रॉकेट ईंधन और आम वाहनों के ईंधन में अंतर
- रॉकेट फ्यूल में सामान्य ईंधन जैसे पेट्रोल या डीजल का उपयोग नहीं होता।
- रॉकेट फ्यूल अत्यधिक ऊर्जावान होता है और यह उच्च तापमान और दबाव में काम करता है।
- रॉकेट का फ्यूल ज्यादा तेजी से जलता है और भारी मात्रा में थ्रस्ट पैदा करता है।